मंगलवार, 27 सितंबर 2011

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भारत जागो विश्व जगाओ जागृत मन्त्र हमारा है|
स्वामीजी की सार्ध शती का सार्थक व्रत ये धारा है||धृ||


वेदमयी है अमृतवाणी, उपनिषदों का सार  भरा|
हृदय से निकले हृदय पे पहुंचे, शब्द नहीं है अनल खरा||
स्वामीजी के अग्निमंत्र ये, साहित्याग्नी यज्ञ शिखा |
फिर से घर घर पहुचने का, व्यापक तंत्र उभारा है ||१||


सिंहनाद को प्रेषित करने, खोजे खालिस शावक हम |
हनुमत बल जागृत करते, निकले सहस्र जाम्बवंत||
स्नेहसुत्र में एक एक को, जोड़े प्रभावी संपर्क|
चमूबद्ध सब कार्य-कर्ता, ईश्वरीय यन्त्र निखारा है ||२||


धरा सनातन संस्कृति अक्षय, अखंड स्वर्ण धरोहर |
धारण शाश्वत धर्म है पाता, युग युग नव अविष्कार||
शिव भावे करे जीव सेवा, भाँति भाँति के संघ|
संगठित यह सज्जन-शक्ति, जगद्गुरु भारत प्यारा है ||३||

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