भारत जागो विश्व जगाओ जागृत मन्त्र हमारा है| स्वामीजी की सार्ध शती का सार्थक व्रत ये धारा है||धृ||
वेदमयी है अमृतवाणी, उपनिषदों का सार भरा| हृदय से निकले हृदय पे पहुंचे, शब्द नहीं है अनल खरा|| स्वामीजी के अग्निमंत्र ये, साहित्याग्नी यज्ञ शिखा | फिर से घर घर पहुचने का, व्यापक तंत्र उभारा है ||१||
सिंहनाद को प्रेषित करने, खोजे खालिस शावक हम | हनुमत बल जागृत करते, निकले सहस्र जाम्बवंत|| स्नेहसुत्र में एक एक को, जोड़े प्रभावी संपर्क| चमूबद्ध सब कार्य-कर्ता, ईश्वरीय यन्त्र निखारा है ||२||
धरा सनातन संस्कृति अक्षय, अखंड स्वर्ण धरोहर | धारण शाश्वत धर्म है पाता, युग युग नव अविष्कार|| शिव भावे करे जीव सेवा, भाँति भाँति के संघ| संगठित यह सज्जन-शक्ति, जगद्गुरु भारत प्यारा है ||३||