शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

सहभाग का आह्वान

भातमाता के महान सपूत जो आगे चल कर विश्व के आदर्श बने ऐसे स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘‘ना तो मैं भविष्य में देखता हूँ ना ही भविष्य की चिन्ता करता हूँ। किन्तु एक दृश्य मेरे सम्मुख जीवित स्पष्टता से दिखाई देता है कि हमारी यह प्राचीन भारतमाता पुनः एक बार जागृत हो चुकी है और अपने सिंहासन पर पूर्व से भी अधिक आलोक के साथ विराजमान है। आइए! शान्ति एवं मंगल वचनों से पूरे विश्व के सम्मुख इसकी उद्घोषणा करें’’
स्वामीजी की 150 वीं जयंति हम सब के लिये राष्ट्रीय महायज्ञ में योगदान का अवसर है। हमारे समर्पण से समस्त मानवता के जागरण में सहयोग होगा और स्वामीजी का स्वप्न ‘‘भारत जागो! विश्व जगाओ!!’’ साकार होगा।
आप भी सहभागी बन सकते हैं।
  •  प्रकाशनों को प्रायोजित कर
  •  होर्डिंग, स्टीकर्स, पोस्टर, पत्रक तथा विज्ञापनों के माध्यम से समारोह का संदेश प्रचारित कर
  •  आगामी दो वर्ष पूर्णकालिक के रूप में समय देकर
  •  अपने नगर में समारोह के आयोजन हेतु कार्यकर्ता के रूप में पंजीयन कर
  •  दान देकर व संग्रह में सहयोग कर
  •  कार्यालय, कार्यक्रम, साहित्य विक्रय के लिये स्थान उपलब्ध करा कर
  •  प्रदर्शनियों तथा प्रचार सामग्री के सज्जांकन में सहयोग कर
  •  विवेक ग्राम, विवेक बस्ती को गोद ले कर

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

पंचमुखी कार्यक्रम

1. युवा शक्ति:
‘‘मेरा विश्वास आधुनिक युवा पीढ़ी में है। उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएंगे और सिंह के समान सभी समस्याओं का समाधान करेंगे।’’ ऐसा स्वामी विवेकानन्द का विश्वास था। आज पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जिसकी पचपन प्रतिशत आबादी युवा है। चिरयुवा प्राचीन भारत!!
स्वामीजी की सार्ध शती के अवसर पर 40 वर्ष की आयु से कम छात्र व गैर छात्र युवाओं द्वारा विवेकानन्द क्लब/विवेकानन्द युवा मंडली को प्रारंभ किया जाएगा। ये सेवा, आत्मविकास, अध्ययन, सुरक्षा व समरसता इन पाँच आयामों को अभिव्यक्त करते हुए कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे।
देश के सभी शहरों में एकसाथ सामूहिक सूर्यनमस्कार महायज्ञ तथा अखिल भारतीय निबन्ध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जायेगा।
2. प्रबुद्ध भारत - सामाजिक व वैचारिक नेतृत्व:
 स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘‘वे ही जीवित हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं अन्यथा तो सभी मृतप्रायः हैं।’’ समाज के अग्रणी एवं प्रबुद्ध वर्ग पर राष्ट्रनिर्माण का महान दायित्व होता है। समाज के सभी क्षेत्रों में से इन वैचारिक पुरोधाओं तथा अभिमत निर्माताओं को जोड़ने के लिये निम्न कार्यक्रम आयोजित होंगे।
1. विमर्श व्याख्यानमाला: सामायिक विषयों पर
2. योग प्रतिमान- वरिष्ठ व्यावसायिक, सरकारी अधिकारी, सुरक्षाबल, अर्द्धसैनिक बल, जनप्रतिनिधि, शाला प्रबंधन, धार्मिक स्थानों के व्यवस्था प्रमुख, गैर शासकीय संस्थाओं (एनजीओ) के प्रमुख आदि के लिये योग पर आधारित विशेष प्रतिमान।
3. सेमिनार - राज्य, राष्ट्रीय, अंतर राष्ट्रीय स्तर पर स्वामी विवेकानन्द, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक मुद्दे तथा तात्कालिक महत्वपूर्ण विषयों पर सेमिनार तथा परिचर्चायें
4. प्रबुद्धजनों और शिक्षाविदों द्वारा प्रसार माध्यमों में स्वामी विवेकानन्द के चरित्र निर्माणकारी संदेश के बारे में लेख व व्याख्यान।
3. ग्रामायण -गाँव की ओर चलें:
‘‘नया भारत निकल पड़े... फिर निकले पड़े गाँववासी की झोंपड़ी से हल पकड़कर; मछुआरे की झुग्गी से निकल पड़े; . . . परचुन की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से निकल पड़े नया भारत। नया भारत उभरे गुफओं और जंगलों से, पर्वतों और पहाड़ों से।’’ भारतीय व्याख्यानों में स्वामी विवेकानन्द ने यह आहवान किया था।
ग्राम समितियों का गठन किया जायेगा। उनके द्वारा भारतमाता पूजन, कथा कीर्तन, मेला, ‘मेरा गाँव मेरा तीर्थ’ आदि कार्यक्रमों का आयोजन होगा।
अस्पृश्यता, व्यसन, मतांतरण, पुलिस/कोर्ट तथा रासायनिक खाद पर निर्भरता से मुक्त ‘विवेक ग्राम’, ‘विवेक बस्ती’ के विकास हेतु दीर्घकालीन प्रकल्प।
4. संवर्धिनी - महिला सहभाग:
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘‘शक्ति के बिना विश्व का पुनरुत्थान संभव नहीं है। ऐसा क्यों है कि हमारा देश सभी देशों में कमजोर और पिछड़ा हुआ है?- क्योंकि यहां शक्ति का अपमान होता है। शक्ति की कृपा के बिना कुछ भी साध्य नहीं होगा।’’
अतः महिलाओं के माध्यम से संस्कृति के संर्वद्धन सुरक्षा व सम्पे्रषण के लिए तथा उनकी सहभागिता को बढ़़ाने के उद्देश्य से समाज के विभिन्न स्तरों में सहभागिता, सेवा, विकास, संस्कृति तथा समरसता को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित हांेगे।
1. दम्पत्ति सम्मेलन - आधे या एक दिन के सम्मेलन में महिलाआंे की समाज जागरण में भूमिका तथा पुरुषों के घर और समाज में योगदान पर चर्चा होगी।
2. शक्ति सम्मेलन -  महिला सम्मेलनों के अन्तर्गत-
(क) प्रदर्शनियाँ- ‘इतिहास के भिन्न-भिन्न कालखंडों में भारतीय मातृशक्ति’, ‘भारतीय वीरांगनायें’, ‘विविध क्षेत्रों में महान नारियाँ’ आदि विषयों पर।
(ख) व्याख्यान, सेमिनार, कार्यशालाएं- विषय - महिला सहभागिता।
5. अस्मिता - जनजातिय समाज :
‘‘राष्ट्र का भवितव्य जनसामान्य की दशा पर निर्भर करता है। क्या तुम उन्हें ऊपर उठा सकते हो?उनके आतंरिक आध्यात्मिक सत्व को नष्ट किए बिना क्या तुम उन्हें अपना खोया परिचय वापस दिला सकते हो?’’ स्वामी विवेकानन्द ने चुनौति दी थी।
जनजातियों के लिये उनकी संस्कृति व उपासना परम्परायें उनका परिचय होता है। ये परमपरायें ही जनजातियों को संगठित व प्रकृति के साथ बनायें रखती हैं। इन परम्पराओं के खोने से वे अपना अस्तित्व, नैतिक मूल्य और शांति भी खो देते हैं। उन्हें समय के साथ आगे बढ़ने के लिये, सांस्कृतिक परमपराओं के माध्यम से विकास करने के लिये सम्बल आवश्यक है। अतः ‘‘संस्कृति के माध्यम से विकास‘‘ के ध्येय से जनजातियों का स्वयं में व अपनी संस्कृति में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये कार्यक्रमों का आयोजन होगा।
कार्यक्रमों का केन्द्रबिन्दु ‘‘आस्था का खोना, संस्कृति का अंत और संस्कृति का खोना, अस्तित्व का अंत’’
1. जनजाति मंच सम्मेलन  2. ग्राम प्रमुख बैठकें  3. जनजाति उत्सवों को  प्रोत्साहन

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

समारोह का सूत्र

भारत जागोः
भारत प्राचीन सभ्यता वाला युवा देश है। भारत में सर्वाधिक युवा हैं। आज हम देखते है कि भारत का युवा शिक्षित है, सक्षम है, गंभीर है और अपने देश, संस्कृति व इतिहास के बारे में जानना चाहता है व पूर्ण मनोयोग से देशसेवा करना चाहता है। उसके मन में जनसामान्य की सेवा की इच्छा है। स्वामी विवेकानन्द ने जो सिंहनाद किया वह अनेक युवाओं के हृदय को छू गया और वे स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आज जब युवा पुनः उंची उड़ान भरने के लिए तत्पर है तब स्वामी विवेकानन्द का संदेश उन्हें भारत को नवीन ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रेरित करेगा।
विश्व जगाओः
स्वामी विवेकानन्द जिन्होंने भारतीय इतिहास के सबसे अन्धेरे कालखंड में भी भारत को जगत्गुरु के रूप में उभरते हुए देखा था। प्राचीन समय में सारा विश्व भारत को गुरु मानता था। आधुनिक जगत कों स्पष्ट ध्येय व गन्तव्य की आवश्यकता है, भौतिक समृद्धि के साथ आध्यात्मिक प्रबुद्धता। अन्यथा पतन निश्चित है। भारत का आलाकित नेतृत्व उभरना केवल भारत के ही नहीं अपितु विश्व के हित में हैं। स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती सर्वाधिक उचित अवसर है जब भारत जगतगुरु के रूप में खड़ा हो अपने समस्त सामथ्र्य एवं दायित्व को समझे और विश्व प्रबोधन करे।
सामाजिक समरसताः
                                              स्वामीजी के संदेश को समाज के सभी वर्गों तक ले जाना समारोह का लक्ष्य है। भारतीय राष्ट्रवाद के नवजागरण का सुत्रपात करनेवाले स्वामी विवेकानन्द क्रांतिकारी चिंतक थे। उन्होने समाज की सनातन धर्म में आस्था को किसी भी प्रकार का आघात पहुँचाये बिना जनजागरण पर बल दिया था। उनकी 150 वी जयंति के अवसर पर समाज के सभी वर्ग उत्स्फूर्त सहभाग के लिये आतूर हैं। सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आयोजन समिति ने समाज के सभी अंगों के सहभाग को सुनिश्चित करने के लिये पाँच विभागों में पंचमुखी कार्यक्रमों की योजना बनाई है।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

स्वामी विवेकानंद सार्ध शती की पुर्वतैयारी


‘‘आज हमारे देश की आवश्यकता है लोहे की मांसपेशियाँ और फौलाद के स्नायु तंत्र, ऐसी प्रचण्ड इच्छाशक्ति जिसे कोई न रोक सके, जो समस्त विश्व के रहस्यों की गहराई में जाकर अपने उद्देश्यों को सभी प्रकार से प्राप्त कर सके। इस हेतु समुद्र के तल तक क्यों न जाना पड़े या मृत्यु का ही सामना क्यों न करना पड़े।’’
-स्वामी विवेकानन्द
श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य, स्वामी विवेकानन्द आधुनिक समय के प्रथम धर्म-प्रचारक थे जिन्होने विदेश जाकर विश्व के सम्मूख सनातन धर्म के सर्वासमावेशक, वैश्विक संदेश को पुनःप्रतिपादित किया। ऐसा संदेश जो सब को स्वीकार करता है किसी भी मत, सम्प्रदाय को नकारता नहीं। स्वामीजी एक प्रखर देशभक्त, राष्ट्र-निर्माता, समाजशास्त्री तथा महासंगठक थे। विदेशी शासन से विदीर्ण शक्ति, परास्त मन व आत्मग्लानी से परिपूर्ण राष्ट्र के पुनर्निमाण हेतु राष्ट्रवादी पुनर्जारण को प्रज्वलित करनेवाले पुरोधा स्वामी विवेकानन्द ही थे। भारत को उसकी आत्मा हिन्दू धर्म के प्रति सजग कर उन्हांेने इस पुनर्जागरण की नीव  रखी।
स्वामी विवेकानन्द की 150 वी जयंती को 12 जनवरी 2013 से 12 जनवरी 2014 तक सार्ध शती समारोह को भव्यता से मनाने की सघन तैयारियाँ देश के कोनें कोनें में चल पड़ी है। विभिन्न संगठन व सरकारें भी समारोह की योजना बना रहे हैं।
भारत की जनता ने सम्मिलित होकर इस महान पर्व को मनाने का निश्चय किया है। आज जब राष्ट्र दोराहे पर खड़ा है तब उसके बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक व राष्ट्रीय आलस व भ्रम को दूर करने का उर्वर अवसर यह समारोह प्रस्तुत करता है।
महत्वपूर्ण सामाजिक नेता, विचारक, स्वामीजी के प्रशंसक तथा अनेक सेवा संगठनों के अनुभवी कार्यकर्ता व युवाओं ने एकत्रित आकर अखिल भारतीय स्तर पर तथा 39 प्रांतों में ‘‘आयोजन समिति’’ गठित की है। इन समितियों ने प्रख्यात चिंतक, युवा आदर्श, सामाजिक व आध्यात्मिक वैचारिक नेतृत्व, वैज्ञानिक, आर्थिक, व्यावसायिक तथा क्रीड़ा क्षेत्र के सफल विजेताओं व अन्य अनेक लोगों से सम्पर्क प्रारम्भ कर दिया है। इनके सहभाग से राष्ट्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर ‘‘स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति’’ का गठन होगा।
यह समितियाँ ही समारोह वर्ष में सभी आयोजन करेंगी।

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

स्वागतम !


भारत जागो विश्व जगाओ जागृत मन्त्र हमारा है|
स्वामीजी की सार्ध शती का सार्थक व्रत ये धारा है||धृ||


वेदमयी है अमृतवाणी, उपनिषदों का सार  भरा|
हृदय से निकले हृदय पे पहुंचे, शब्द नहीं है अनल खरा||
स्वामीजी के अग्निमंत्र ये, साहित्याग्नी यज्ञ शिखा |
फिर से घर घर पहुचने का, व्यापक तंत्र उभारा है ||१||


सिंहनाद को प्रेषित करने, खोजे खालिस शावक हम |
हनुमत बल जागृत करते, निकले सहस्र जाम्बवंत||
स्नेहसुत्र में एक एक को, जोड़े प्रभावी संपर्क|
चमूबद्ध सब कार्य-कर्ता, ईश्वरीय यन्त्र निखारा है ||२||


धरा सनातन संस्कृति अक्षय, अखंड स्वर्ण धरोहर |
धारण शाश्वत धर्म है पाता, युग युग नव अविष्कार||
शिव भावे करे जीव सेवा, भाँति भाँति के संघ|
संगठित यह सज्जन-शक्ति, जगद्गुरु भारत प्यारा है ||३||