बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

समारोह का सूत्र

भारत जागोः
भारत प्राचीन सभ्यता वाला युवा देश है। भारत में सर्वाधिक युवा हैं। आज हम देखते है कि भारत का युवा शिक्षित है, सक्षम है, गंभीर है और अपने देश, संस्कृति व इतिहास के बारे में जानना चाहता है व पूर्ण मनोयोग से देशसेवा करना चाहता है। उसके मन में जनसामान्य की सेवा की इच्छा है। स्वामी विवेकानन्द ने जो सिंहनाद किया वह अनेक युवाओं के हृदय को छू गया और वे स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आज जब युवा पुनः उंची उड़ान भरने के लिए तत्पर है तब स्वामी विवेकानन्द का संदेश उन्हें भारत को नवीन ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रेरित करेगा।
विश्व जगाओः
स्वामी विवेकानन्द जिन्होंने भारतीय इतिहास के सबसे अन्धेरे कालखंड में भी भारत को जगत्गुरु के रूप में उभरते हुए देखा था। प्राचीन समय में सारा विश्व भारत को गुरु मानता था। आधुनिक जगत कों स्पष्ट ध्येय व गन्तव्य की आवश्यकता है, भौतिक समृद्धि के साथ आध्यात्मिक प्रबुद्धता। अन्यथा पतन निश्चित है। भारत का आलाकित नेतृत्व उभरना केवल भारत के ही नहीं अपितु विश्व के हित में हैं। स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती सर्वाधिक उचित अवसर है जब भारत जगतगुरु के रूप में खड़ा हो अपने समस्त सामथ्र्य एवं दायित्व को समझे और विश्व प्रबोधन करे।
सामाजिक समरसताः
                                              स्वामीजी के संदेश को समाज के सभी वर्गों तक ले जाना समारोह का लक्ष्य है। भारतीय राष्ट्रवाद के नवजागरण का सुत्रपात करनेवाले स्वामी विवेकानन्द क्रांतिकारी चिंतक थे। उन्होने समाज की सनातन धर्म में आस्था को किसी भी प्रकार का आघात पहुँचाये बिना जनजागरण पर बल दिया था। उनकी 150 वी जयंति के अवसर पर समाज के सभी वर्ग उत्स्फूर्त सहभाग के लिये आतूर हैं। सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आयोजन समिति ने समाज के सभी अंगों के सहभाग को सुनिश्चित करने के लिये पाँच विभागों में पंचमुखी कार्यक्रमों की योजना बनाई है।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

स्वामी विवेकानंद सार्ध शती की पुर्वतैयारी


‘‘आज हमारे देश की आवश्यकता है लोहे की मांसपेशियाँ और फौलाद के स्नायु तंत्र, ऐसी प्रचण्ड इच्छाशक्ति जिसे कोई न रोक सके, जो समस्त विश्व के रहस्यों की गहराई में जाकर अपने उद्देश्यों को सभी प्रकार से प्राप्त कर सके। इस हेतु समुद्र के तल तक क्यों न जाना पड़े या मृत्यु का ही सामना क्यों न करना पड़े।’’
-स्वामी विवेकानन्द
श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य, स्वामी विवेकानन्द आधुनिक समय के प्रथम धर्म-प्रचारक थे जिन्होने विदेश जाकर विश्व के सम्मूख सनातन धर्म के सर्वासमावेशक, वैश्विक संदेश को पुनःप्रतिपादित किया। ऐसा संदेश जो सब को स्वीकार करता है किसी भी मत, सम्प्रदाय को नकारता नहीं। स्वामीजी एक प्रखर देशभक्त, राष्ट्र-निर्माता, समाजशास्त्री तथा महासंगठक थे। विदेशी शासन से विदीर्ण शक्ति, परास्त मन व आत्मग्लानी से परिपूर्ण राष्ट्र के पुनर्निमाण हेतु राष्ट्रवादी पुनर्जारण को प्रज्वलित करनेवाले पुरोधा स्वामी विवेकानन्द ही थे। भारत को उसकी आत्मा हिन्दू धर्म के प्रति सजग कर उन्हांेने इस पुनर्जागरण की नीव  रखी।
स्वामी विवेकानन्द की 150 वी जयंती को 12 जनवरी 2013 से 12 जनवरी 2014 तक सार्ध शती समारोह को भव्यता से मनाने की सघन तैयारियाँ देश के कोनें कोनें में चल पड़ी है। विभिन्न संगठन व सरकारें भी समारोह की योजना बना रहे हैं।
भारत की जनता ने सम्मिलित होकर इस महान पर्व को मनाने का निश्चय किया है। आज जब राष्ट्र दोराहे पर खड़ा है तब उसके बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक व राष्ट्रीय आलस व भ्रम को दूर करने का उर्वर अवसर यह समारोह प्रस्तुत करता है।
महत्वपूर्ण सामाजिक नेता, विचारक, स्वामीजी के प्रशंसक तथा अनेक सेवा संगठनों के अनुभवी कार्यकर्ता व युवाओं ने एकत्रित आकर अखिल भारतीय स्तर पर तथा 39 प्रांतों में ‘‘आयोजन समिति’’ गठित की है। इन समितियों ने प्रख्यात चिंतक, युवा आदर्श, सामाजिक व आध्यात्मिक वैचारिक नेतृत्व, वैज्ञानिक, आर्थिक, व्यावसायिक तथा क्रीड़ा क्षेत्र के सफल विजेताओं व अन्य अनेक लोगों से सम्पर्क प्रारम्भ कर दिया है। इनके सहभाग से राष्ट्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर ‘‘स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति’’ का गठन होगा।
यह समितियाँ ही समारोह वर्ष में सभी आयोजन करेंगी।